भारत देश विभिन्न संस्कृतियों का धनी है. यहां कई तरह के त्योहार मनाए जाते हैं और सभी के अपने ही अलग रंग दिखाई देते हैं.
इन दिनों चारों तरफ एक ही जयकारा गूंज रहा है और वो है-
गणपति बप्पा मोरिया,
मंगळमूर्ती मोरया,
पुढ़च्यावर्षी लवकरया…
मोरिया रे, बप्पा मोरिया रे! …
गणेशोत्सव की शुरुआत हो गयी है. इस बार मुंबई-चा-राजा मुंबई के साथ ही साथ भारत के विभिन्न शहरों में बड़े शान से स्थापित होगा. आज घरों में, सोसाइटी और कॉलोनी के पार्क में मोहक सुन्दरता वाले बप्पा आ चुके है. ढोल, ताशे के साथ ही चलते-फिरते डी.जे की धूमधाम के बीच बप्पा का ये त्यौहार 11 दिन तक बड़े शोर-गुल के साथ मनाया जाता है.
गणेश चतुर्थी से गणेश विसर्जन तक ‘मोरिया’ की धूम रहती है. यह तो हम जानते ही हैं कि हमारे देश में देवता ही नहीं, भक्त भी पूजे जाते हैं. आस्था के आगे तर्क, ज्ञान, बुद्धि जैसे उपकरण काम नहीं करते. आस्था एक ऐसी शक्ति है जिसके सूत्रों की तलाश पुराणों या फिर इतिहास के पन्नों में नहीं की जा सकती. आस्था में सिर्फ और सिर्फ महिमा प्रभावी होती है
क्या आप जानते हैं बप्पा से जुड़े इस मोरया नाम के पीछे का राज़ क्या है? एक कहानी सुनी थी मैंने कि सदियों पहले पुणे के पास चिंचवड़ एक जगह थी जहां मोरया गोसावी नाम के गणेशभक्त रहते थे. इन्होंने यहां गणेश जी की कठिन साधना की थी. तभी से यहां का गणेश मन्दिर देशभर में प्रसिद्ध हुआ और गणेशभक्तों ने गणपति के नाम के साथ मोरया के नाम का जयघोष शुरू कर दिया. इतना ही नहीं ये भी कहा जाता है कि ‘मोरया’ शब्द के पीछे मोरगांव के गणेश जी हैं.
मेरे हिसाब से गणेश जी ऐसे बेटे हैं जो माता पिता के द्वारा भी पूजनीय हैं. इन्हें पुराणों में परब्रम्हा बताया गया है. हर शुभ कार्य में सबसे पहले इन्हें पूजा जाता है. बप्पा विघ्नय को दूर करने वाले, बुद्धि देने वाले, अष्ट सिद्धि और नव निधि के दाता भी कहलातें है.
तो आइए गणेश चतुर्थी के इस पावन अवसर पर विघ्न्यहर्ता, प्रथमपूज्य गणेश जी के सबसे प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिरों के दर्शन करते है. जहां हर दिन बप्पा के भक्तों की जबरदस्त भीड़ उमड़ती है.
1. सिद्दिविनायक मंदिर, मुंबई
सिद्घिविनायक गणेश जी – ये रूप गणपति जी का सबसे लोकप्रिय रूप है. अक्सर लोगों के बीच आपने ये सुना होगा कि गणेश जी की जिन प्रतिमाओं में उनकी सूड़ दाईं ओर मुड़ी होती है, वे सिद्घपीठ से जुड़ी होती हैं और उनके मंदिर सिद्घिविनायक मंदिर कहलाते हैं. कहते हैं कि सिद्धि विनायक की महिमा अपरंपार है, वे भक्तों की मनोकामना को तुरंत पूरा करते हैं. ऐसी मान्यता है कि सिद्घिविनायक गणपति जितनी जल्दी अपने भक्तों से प्रसन्न होते हैं और उतनी ही जल्दी रूठ भी जाते हैं. मुंबई का ये सिद्घिविनायक मंदिर सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी काफी विख्यात है. यहां हर साल करोड़ों का दान चढ़ता है. वैसे भी मुंबई के आराध्य देवता गणेश जी को ही माना जाता है. इसी कारण भी यह मंदिर बहुत प्रसिद् है.
2. श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई मंदिर, पुणे
श्रीमंत दगड़ूशेठ हलवाई गणपति मंदिर बहुत ही अद्भुत मंदिर है. यहां भक्त जैसे बप्पा के दीवाने हैं. आस्था की जो हमने बात कही थी वो आपको इस मंदिर में अपार देखने को मिलेगी. यहां भक्तों की बप्पा के प्रति आस्था साफ नजर आती है. कोई इन्हें फूलों से सजाता है, तो कोई इन्हे सोने से लाद देता है, तो कोई इन्हे मिठाई से सजाता है, तो कोई नोटों से पूरे मंदिर को ढक देता है. संचित धन के हिसाब से इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यह देश का सबसे धनी गणपति मंदिर है. भक्त की भगवान के प्रति इस तरह की कई अनोखी आस्थाओं का उदाहरण देखने को मिलता है भगवान गणेश के इस मंदिर में.
3. मोती डूंगरी गणेश मंदिर, जयपुर
मोती डूंगरी गणेश मंदिर राजस्थान में जयपुर के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है. यह मंदिर भगवान गणेश को समर्पित है. लोगों की इसमें विशेष आस्था तथा विश्वास है. गणेश चतुर्थी के अवसर पर यहाँ काफ़ी भीड़ रहती है और दूर-दूर से लोग दर्शनों के लिए आते हैं. इतिहासकार बताते हैं कि यहां स्थापित गणेश प्रतिमा जयपुर नरेश माधोसिंह प्रथम की पटरानी के पीहर मावली से 1761 में लाई गई थी. मावली में यह प्रतिमा गुजरात से लाई गई थी. उस समय यह पांच सौ वर्ष पुरानी थी. जयपुर के नगर सेठ पल्लीवाल यह मूर्ति लेकर आए थे और उन्हीं की देखरेख में मोती डूंगरी की तलहटी में गणेशजी का मंदिर बनवाया गया था.
4. रणथंभौर गणेश जी, राजस्थान
गणपति जी के प्राचीन मंदिरों में रणथंभौर गणेश जी का भी नाम शामिल है. ये रणथंभौर किले के महल पर बहुत पुराना मंदिर है. ये मंदिर करीब 1000 साल पुराना है. इस मंदिर को विश्व का पहला गणेश मंदिर माना जाता है. यहां गणेश जी की पहली त्रिनेत्री प्रतिमा विराजमान है. यह प्रतिमा प्रकट हुई है. यहां तीन नेत्र वाले गणेश जी नारंगी रंग में स्थापित हैं. रणथंभौर गणेश जी विदेशियों के बीच काफी प्रचलित हैं. दूर-दूर से लोग यहां बप्पा के इस अद्भुत रूप का दर्शन करने के लिए आते हैं. इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यहां आने वाले पत्र हैं. घर में शुभ काम हो या कोई भी परेशानी. उसे दूर करने की अरदास भक्त यहां पत्र भेजकर लगाते है. रोजाना हजारों निमंत्रण पत्र और चिट्ठियां यहां डाक से पहुंचती हैं. कहते है यहां सच्चे मन से मांगी मुराद पूरी होती है. मान्यता है कि विक्रमादित्य भी हर बुधवार को यहां पूजा करने आते थे.
5. मंडई गणपति, पुणे
मंडई के गणेश मंडल को भक्त अखिल मंडई गणपति के नाम से भी जानते हैं. पुणे में इस गणेश मंडल का खासा महत्व है. गणपति महोत्सव के दौरान यहां भक्तों की बड़ी भीड़ उमड़ती है. वहीं दूर-दूर से लोग इनके दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं.
6. कनिपक्कम विनायक मंदिर, चित्तूर
इस मंदिर की स्थापना 11वीं सदी में चोल राजा कुलोतुंग चोल प्रथम ने की थी. बाद में इसका विस्तार से निर्माण 1336 में विजयनगर साम्राज्य में किया गया. जितना प्राचीन ये मंदिर है उतनी ही दिलचस्प इसके निर्माण के पीछे की कहानी भी है. आस्था और चमत्कार की ढेरों कहानियां खुद में समेटे कनिपक्कम विनायक का ये मंदिर आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में मौजूद है. कहते हैं यहां हर दिन गणपति का आकार बढ़ता ही जा रहा है. साथ ही ऐसा भी मानते हैं कि अगर कुछ लोगों के बीच में कोई लड़ाई हो, तो यहां प्रार्थना करने से वो लड़ाई खत्म हो जाती है.
7. उच्ची पिल्लैयार मंदिर, रॉकफोर्ट
ये दक्षिण भारत का प्रसिद्ध पहाड़ी किला मंदिर तमिलनाडु राज्य के त्रिची शहर के मध्य पहाड़ के शिखर पर स्थित है. चैल राजाओं की ओर से चट्टानों को काटकर इस मंदिर का निर्माण किया गया था. यहां भगवान श्री गणेश का बहुत सुन्दर मंदिर है. पहाड़ के शिखर पर विराजमान होने के कारण गणेश जी को उच्ची पिल्लैयार कहते हैं. यहां दूर-दूर से दर्शनार्थी दर्शन करने के लिए आते हैं.
8. मनाकुला विनायगर मंदिर, पांडिचेरी
भगवाग श्री गणेश का ये मंदिर पांडिचेरी में स्थित है. पर्यटकों के बीच ये मंदिर आकर्षण का विशेष केंद्र है. प्राचीन काल का होने के कारण इस मंदिर की बड़ी मान्यता है. इस मंदिर को भी गणेश जी के प्राचीन मंदिरों में से एक माना गया है. कहते हैं कि ये मंदिर जिस क्षेत्र में है उस पर जब फ्रांस का कब्ज़ा था तब से ये मंदिर बना हुआ है. यहां दूर दराज से भक्त भगवान श्रीगणेश जी की प्राचीन मूर्ति के दर्शन करने आते हैं.
9. मधुर महा गणपति मंदिर, केरल
इस मंदिर से जुड़ी सबसे रोचक बात ये है कि शुरुआत में ये भगवान शिव का मंदिर हुआ करता था, लेकिन पुरानी कथा के अनुसार पुजारी के बेटे ने यहां भगवान गणेश की प्रतिमा का निर्माण किया. पुजारी का ये बेटा छोटा सा बच्चा था. खेलते-खेलते मंदिर के गर्भगृह की दीवार पर बनाई हुई उसकी प्रतिमा धीरे-धीरे अपना आकार बढ़ाने लगी. वो हर दिन बड़ी और मोटी होती गई. उस समय से ये मंदिर भगवान गणेश का बेहद खास मंदिर हो गया.
10. गणेश टोक, (गंगटोक), सिक्किम
गणेश टोक मंदिर गंगटोक-नाथुला रोड से करीब 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह यहां करीब 6,500 फीट की ऊंची पहाड़ी पर स्थित है. कहां जाता है इस मंदिर के बाहर खड़े होकर आप पूरे शहर का नजारा एक साथ ले सकते हैं.