एक खत कानपुर वाली चारू के नाम
ये कहानी हम तीन दोस्तों की है – चारु, एकता और मैं पिया. हमारी दोस्ती इंजीनियरिंग कोर्स में काउंसलिंग के दौरान कानपुर यूनिवर्सिटी में हुई थी.इस शहर ने मुझे बहुत सारी यादें दी हैं. आज उन्हीं यादों को समेट के ले जा रही हूं.
कानपुर में पहला दिन:
मुझे बहुत घबराहट हो रही थी कि यहां भी कोई सीट नहीं मिली तो मेरा क्या होगा. मेरा ये साल अब बाबा के साथ रह कर गांव वाले कॉलेज में बी.एस.सी करते निकल जाएगा. मेरे जैसे हाल वाला कोई और कुछ दूरी पर बैठा था और वो थी एकता. दबी आवाज में ये बड़बड़ा रही थी कि अगर सीट न मिली तो ग्रेजुएशन कर पापा शादी करा देंगे.यूनिवर्सिटी कैंपस में और भी कई कोर्स की काउंसलिंग चल रही थी,इतने में एकदम से भगदड़ जैसी मच गयी. पुलिस की कई गाड़ियों के साथ उनके कुत्ते कैंपस में घूमने लगे. बहुत देर तक यही सब चलता रहा. दो-तीन न्यूज़ चैनल से रिपोर्टर आ गए. पहले वो प्रशासनिक भवन में गए फिर वहां से निकलते ही स्टूडेंट्स के पास आए तब हमे पता चला कि कैंपस में बम होने की किसी ने अफवाह फैलाई थी. वीसी भी इस बात से परेशान थे कि ऐसा करने की किसकी हिम्मत हो गयी. रिपोर्टर्स के पूछने पर वीसी ने यही बोला की जल्द से जल्द इसकी पड़ताल की जाएगी कि ऐसी अफवाह किसने फैलायी.मैं एकदम चौंक के रह गयी थी, फिर थोड़ी-थोड़ी हंसी आने लगी. ये था कानपुर में मेरा पहला दिन.
कॉलेज की लास्ट डांस पार्टी:
रात के पौने दस बज रहे थे. अब ये शोर-गुल वाला म्यूजिक मुझे चुभने लगा था. मैंने एकता को बोला कि अब बस बहुत हुआ, चलो हॉस्टल चलते हैं. एकता को राघव के साथ और डांस करना था. पहले तो उसने मुझे एक घंटा रुकने के लिए मनाया,फिर बोली कि अगर बहुत थकी हो तो तुम चलो, मैं आती हूं. मैं हॉस्टल की तरफ बढ़ने लगी थी. गेस्टहाउस से कुछ दूरी पर गर्ल्स हॉस्टल था.पीछे से इती भागते हुए आई. ये हमारे पास वाले रूम में रहती थी. हॉस्टल जा रही हो ? मैं भी साथ चलती हूं. इती रास्ते भर मुझसे इधर-उधर की बातें करती गयी. कभी एकता राघव के अफेयर की तो कभी मेरे साथ वैभव का नाम जोड़ती. अब मुझे इस सब बातों से पहले की तरह गुस्सा नहीं आता था. इतने में मुझसे चारू के लिए बोल पड़ी. क्या अब तुम और एकता चारू के साथ नहीं हो?
मैंने अपनी चाल तेज की और रूम में पहुच गयी. रूम में जाते ही कपड़े बदले और अपनी पार्टी वाली ड्रेस को अलमारी में रखने लगी.मेरी नजर पिछली दिवार पर पड़ी जहां मेरे, एकता और चारू की बहुत फोटोज लगी हुई थी. इतने में एकता भी रूम में आ गयी थी. एकता मेरे गले लग के बोली,‘I love Raghav’. मैं हंस के बोली ये तो होना ही था. एकता मेरी नम आँखें देखते हुए समझ गयी थी की मैं चारू को याद कर रही हूं.
अफवाह वाली औरत:
चारू……! कानपुर यूनिवर्सिटी के सबसे बड़ेवाले मस्तीखोर का दूसरा नाम चारू मिश्रा था.काउंसलिंग के समय बम वाली अफवाह चारु मिश्रा का काम था. हॉस्टल की परेशानी से लेकर कानपुर में कोई भी काम हो सब चारू के पास एक बार जरूर हाजरी लगा जाते थे.
कानपुर दर्शन:
मैं और एकता कानपुर से बहुत डरते थे.लेकिन चारू ने हमें बदल दिया. अब कानपुर हमारे होमटाउन जैसा था.
दरअसल चारू यहां अपनी नानी के साथ बचपन से रहती थी. तो वो इस शहर के बारे में सब कुछ जानती थी. फर्स्ट ईयर से लेकर थर्डईयर तक हमने खूब कानपुर दर्शन किए.
जब भी मन उदास होता या फिर शांति चाहिए होती तो हम बिठूर गंगा तट पर चले जाते. वहां पर शांत और गहरी गंगा नदी के पास बैठ अजीब सा सुकून मिलता था. मुझे फोटोग्राफी का भी बड़ा शौक था. जहां जाती मेरा कैमरा साथ होता. घाट पर बहुत बंदर थे,उनसे ज्यादा शरारती बंदर के बच्चे.ऊपर पेड़ से नदी में छलांग मार रहे थे.
चारु वैसे तो बहुत मस्तीखोर थी, लेकिन भगवान में उसकी अटूट आस्था थी. वो हफ्ते में तीन दिन मंदिर जाया करती थी. हम भी उसके साथ एक ही स्कूटी पर लटक लिया करते थे. उसने अपनी स्कूटी पर यूही प्रेस लिखवा रखा था. कुछ कहो तो बोलती थी….’भोकाल जरूरी है बे’. हमने ये भोकाल वर्ड कानपुर में ही सुना था.
हर सोमवार हम बाबा अनंदेश्वेर के दर्शन करने जाते थे. कहते हैं भोलेनाथ ने कानपुर शहर को गंगा जी में डूबने से बचा रखा है. मंगलवार को पनकी वाले हुनमान जी और बुधवार को सिद्धिविनायक वाले गणपति जी से मिलने हम हमेशा साथ जाते थे.एक दिन हम उसकी नानी के पास गए. नानी ने हमें कानपुर के बारे में बहुत कुछ बताया. यहाँ के नानाराव पार्क से भारत के स्वतंत्रता की लड़ाई की शुरुवात, तो पूरे विश्व में दूसरा महाशक्तिशाली रावण के मंदिर की कहानी बताई.राधा-किशन मंदिर,प्राचीन काली मंदिर, साउथ इंडियन गणेश मंदिर की भी यहां बहुत मान्यता है.
हम तीनो खाने-पीने के बहुत शौक़ीन थे. ब्राह्मण फॅमिली की चारु दबा के नॉनवेज खाती थी. ये सिर्फ हम तीन दोस्तों को पता था. हॉस्टल के खाने से बोर होकर हम तीनो अक्सर बाहर खाना खाने जाते थे. नॉनवेज को देखकर अक्सर हम भूखे-भिखारी बन जाते और टूट कर खाते थे. हमारी शुरुवात कानपुर के फेमस रोस्टेड चिकन से होती हुई तवा चिकन टिक्का, रुमाली रोटी और चिकन टिक्का राइस पर ख़त्म होती थी. शहर से पहली बार निकले हम और एकता कानपुर आकर जैसे पागल से हो गए थे. यहां पर खुले पब-क्लब और थीम रेस्तरो ने जैसे दिल जीत लिया हो.गुजरती, रेट्रो, विंटेज,बॉलीवुड जैसे कई थीम बेस्ड रेस्तरा है. अब हमें बॉयफ्रेंड की कमी खलने लगी थी ऐसी जगह जाने के लिए उनसे अच्छा एटीएम नहीं हो सकता.
धोखेबाज गुरप्रीत:
बॉयफ्रेंड के मामले में एकता ने बाजी मार ली थी. गुरप्रीत उसको पहले दिन से पसंद करने लगा था, ऐसा हमें लगता था. उनकी पहली डेट में हम तीनो गुरप्रीत के साथ गए, वहां हमने खूब खाया और मजे किए. कुछ देर में जब बिल देने की बारी आई तो गुरप्रीत मिस्टर इंडिया बन गया था. हमारे पास पर्स तो थे पर उसमे पैसे नहीं थे. गुरप्रीत का फोन ऑफ और चारु का गालियां बकना चालू. ऐसे में फर्स्टइयर टॉपर राघव याद आया. फाइनली राघव ने आकर सब संभाल लिया. यहां एकता को अपना True Love मिल गया था, जब राघव ने चारु और मुझसे तो पैसे मांगें पर एकता से नहीं.चार सौ रुपए में बनिया एकता गुप्ता ने राघव को अपना दिल दे दिया था.
पिया का पिया:
इंजीनियरिंग के दूसरे साल तक हमारी रग-रग में कानपुर दौड़ रहा था. हमारी भाषा में कानपुर वाला भोकाली टोन आ गया था. इस साल हमने लैपटॉप भी ले लिया. अब रात को Facebook चलने दो. राघव की प्रोफाइल में मुझे एक बंदा कानपुर की मौज लेते दिखा. उसने अपने स्टेटस पर लिखा था…,
आज का मैच देखकर ये समझ नहीं आ रहा था की ये मैच हो कहा रहा है,इतने में मेरी नजर स्टेडियम पर जगह-जगह लगे पानपसंद के बैनर पर पड़ी. समझ आ गया ये कानपुर है…
ये पढ़ते ही मुझसे रहा न गया, मैंने रिप्लाई में कानपुर की इंडस्ट्री के बारे में बताया और इन बड़ी-बड़ी इंडस्ट्री से जुड़े इम्प्लोय्मेंट के बारे में बहुत कुछ जानकारी दे दी. कुछ देर में ही मुझे वैभव की फ्रेंड रिक्वेस्ट आई. वैभव राघव का अच्छा दोस्त था और एमबीए डिपार्टमेंट से था. हमारी दोस्ती की शुरुआत कैफेटेरिया से हुई. मैंने बहुत दिन से कैमरा नहीं उठाया था आज हम दोस्त कानपुर जू आए थे. राघव और वैभव भी साथ थे. हम शुरुवात से लेकर सारे जानवर के बारे में पढ़ते जा रहे थे. तभी वैभव ने पेड़ से एक पत्ता तोड़ कर मुझे प्रपोज कर दिया. मैंने सोचा नहीं था लड़ाई से शुरुवात दोस्ती और फिर रिलेशनशिप में बदल जाएगी. मैंने झट से उसे हां बोल दिया और गले लग गयी.कुछ दूर कोई खड़ा था और मुझे देख रहा था, मेरा ध्यान वैभव पर था.यहां मुझे मेरा पिया मिल गया था.
एक खत चारु के नाम:
रात के पौने तीन बज रहे थे. एकता ने अभी तक डांस पार्टी वाली ड्रेस बदली नहीं थी.दिवार पर लगी फोटोज साफ़ दिखने लगी थी क्योंकि हमारी आँखों से पानी बह कर हाथ पर आ गिरा था.अगली सुबह सारा दिन मेरे और एकता की पैकिंग में निकल गया था.कुछ लड़कियां हॉस्टल से जा चुकी थी. हमारी भी कल ट्रेन थी. मैं और एकता अपने-अपने घर जा रहे थे. राघव भी एकता के साथ जा रहा था. वैभव और राघव हॉस्टल के बाहर खड़े थे. वैभव मुझे सीऑफ़ करना चाहता था. हमने सारा सामान बाहर निकाला, मुझे लग रहा था कुछ छूट रहा है. मैं स्टडी टेबल पर रखा हुआ खत भूल रही थी, जो मैंने चारु के लिए लिखा था. कानपुर सेंट्रल में जैसे ही मेरी ट्रेन की अनाउंसमेंट हुई, मुझे यकीन था चारु स्टेशन जरूर आएगी. ट्रेन चल दी. वैभव को अभी तक ये समझ नहीं आ रहा था की मैंने ब्रेकअप क्यों किया? चारु मुझे सबसे बड़ा दुश्मन समझने लगी थी. मेरा वो खत वहीं सेंट्रल की बेंच पर पड़ा रहा.
‘डियर कनपुरिया चारु,
तुम्हारे जैसे दोस्त कहीं नहीं मिलेगा. मुझे पता हैं क्यों तुमने मुझसे बात करना बंद कर दिया.मैं ये नही जानती थी की तुम अपनी डायरी में जिस लड़के के बारे में लिखती थी वो वैभव था. सब ये सोच के बहुत परेशान थे की तुमने जू से आने के बाद मुझसे बात करना बंद क्यों किया था.ये तो तब जाना जब एकता ने मुझे बताया की जू में तुमने मुझे और वैभव को देखा था.आज मैं अपने साथ वैभव को नहीं तुम्हारे और एकता के साथ बिताए कानपुर की यादें ले के जा रही हूं. वैभव से ज्यादा तुम्हारे कनपुरिया भोकाल की जरुरत हैं.
मुझे याद करना!
……….पिया
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