आज भी हवाओं में आती है इत्र कि भीनी-भीनी खुशबू
महक की इस रेस में आज भले ही कई परफ्यूम क्यों न आ गए हो लेकिन महक के शौकीन लोग आज भी इत्र लगाना पसंद करते हैं.
महक एक ऐसी चीज हैं जो आपकी पहचान बताती है. कहा जाता है कि महक में वो तासीर होती है, जो किसी भी मुरझाए मन को जिंदादिल, खुशमिज़ाज़ और तरोताज़ा बना देती है. महक चाहे फ़ूल की हो या फिर इत्र की, तन और मन में एक अलग ही स्फूर्ति और रोमांच से भर देती है.
महक की इस रेस में आज भले ही कई परफ्यूम क्यों न आ गए हो लेकिन महक के शौकीन लोग आज भी इत्र लगाना पसंद करते हैं. बारात में आए बारातियों के स्वागत से लेकर देवी-देवताओं के पूजन में भी इत्र का प्रयोग कोई नई बात नहीं है. दरअसल वैदिक काल से इत्र का उपयोग भारतीय संस्कृति में होता आया है, लेकिन कुछ खास इत्र का प्रयोग मुगल युग से शुरू हुआ था. आइए चलते हैं इत्र कि नगरी में.
यहां से शुरू हुआ इत्र का सफ़र
इत्र बनाने की कला प्राचीन मेसोपोटामिया और मिस्र में शुरू हुई. इसके बाद रोमन और अरबों द्वारा इसे बारीकी और रीफाइंड तरीके से बनाया गया. कहा जाता है दुनिया की पहली केमिस्ट कही जाने वाली मेसोपोटामिया की एक महिला ने क्यूनिफॉर्म टैबलेट की मदद से इत्र बनाया था. उसने फूलों, तेल और कैलमेस को अन्य एरोमेटिक्स के साथ मिलाकर फ़िल्टर्ड किया और इत्र के रूप में बनाया.
वहीं दूसरी और भारत में इत्र की शुरुआत प्राचीन भारतीय परंपरा और वेदों के समय से मानी जाती है. ये भी कहा जाता है कि इत्र कि नगरी कन्नौज में इसे बनाने का नुस्खा फ्रांस के कारीगरों से मिला था. ये कारीगर मलिका-ए-हुस्न नूरजहां ने एक विशेष प्रकार के इत्र जो गुलाब से बनाया जाता था, के निर्माण के लिए बुलाये थे. उस समय से लेकर आज तक इत्र बनाने के तरीकों में कोई विशेष अंतर नहीं आया है. आज भी अलीगढ़ में उगाये दमश्क गुलाब का, कन्नौज की फैक्ट्री में बना इत्र पूरी दुनिया में मशहूर है. इसके अलावा गेंदा, गुलाब और चमेली का इत्र विशेष रूप से प्रसिद्ध है.
इत्र एक ऐसी कला है जिसके लिए भारत हमेशा से ही ऊर्जावान और प्रसिद्ध रहा है. लेकिन आज भारत के साथ ही साथ विदेशों में भी इत्र विभिन्न सुगंधों से भरा हैं. ये महक आज दुनिया भर की किसी भी राजधानी में उपलब्ध हैं. आज जो भी इत्र के ब्रांड नाम है, इनमें से ज्यादातर फ्रांस में विशेष रूप से पेरिस में उत्पन्न होते हैं.
जब-जब महक कि बात चली शहर-ए-इत्र कन्नौज का नाम आया
कन्नौज की हवाओं में आज भी इत्र की भीनी सी महक आती है, जब भी अच्छी खुशबू की बात आती है तो सबसे पहले कन्नौज का नाम आता है. ऐसी ही नहीं इसे इत्र की नगरी कहा जाता है. इसी शहर ने लोगों को खुशबू की परिभाषा समझाई है. कन्नौज में इत्र बनाने की परंपरा बहुत पुरानी है. यहां के खुशबूदार इत्र की मांग सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. कहते है कन्नौज में बनने वाले इत्र का इतिहास काफी पुराना है, इस इत्र की मांग खाड़ी देशों में काफी ज्यादा है. यहां की गली-गली में इत्र बनाने की फैक्ट्रियां हैं जो बेहतरीन क्वालिटी के इत्र का निर्माण करती हैं. यहां आप चाहें जिधर से भी गुजरें हवा में घुली खुशबू आपके पैरों को बांध लेगी. कन्नौज के इत्र किसी जमाने में उसी तरह से पसंद किए जाते थे, जैसे आज फ्रांस के इत्र पसंद और उपयोग में लाये जाते हैं.
यहां के बाजारों में अभी भी है इत्र की डिमांड
महक को लेकर लोगों की अलग-अलग पसंद होती है. किसी को डार्क खुशबू पसंद है तो किसी को लाइट, किसी को स्पाइसी ट्विस्ट अच्छा लगता है तो किसी को फ्रूटी सेंस. कुल मिलाकर ये जान लेना जरूरी है कि आपकी हर ख्वाहिश का ख्याल यहां का बाजार रखता है. आप बस पसंद बताइए, फ्रैगरेंस हाजिर हो जाएगी. इब्राहिमपुरा की गली भोपाल में ही नहीं, देश-विदेश में भी इत्र के लिए खासी प्रसिद्ध हैं. इसी तंग गली में 80 साल पुरानी परफ्यूमर्स शॉप हैं. इत्र भोपाल के नवाब विशेष तौर पर इस्तेमाल किया करते थे. राजस्थान के राजा-महाराजा भी इत्र का उपयोग करते थे. मुंबई में भी इत्र की विशाल रेंज देखने को मिल जाएगी. इसके साथ ही कन्नौज, आसाम, दिल्ली के चांदनी चौक में, आगरा, लखनऊ के हजरतगंज और हैदराबाद के पुराने शहरों में अभी भी ऐसे इत्र मौजूद हैं, जो मुगल काल से अभी तक पसंद किए जा रहे हैं.
मिट्टी और गुलाब से बनता है यहां का सबसे खास एल्कोहल फ्री इत्र
कन्नौज में इत्र एक खास मिट्टी से बनाया जाता है जिसकी सौंधी खुशबू इस कदर ज़हन में उतरती है कि मानों आप किसी और दुनिया में हों. यहां का दूसरा खास इत्र गुलाब से बनकर तैयार होता है जिसकी खेती खासतौर से अलीगढ़ में की जाती है. ये ख़ास इत्र दमश्क गुलाबों से बनाया जाता है. कन्नौज में जगह-जगह आपको इत्र की दुकानें मिल जाएंगी जिनके पास इत्र की इतनी किस्में होती हैं कि आप फैसला ही नहीं कर पाएंगे कि कौन सी खुशबू आपको ज्यादा पसंद आयी. इस खुशबू के पीछे सबसे बड़ा कारण यहां के इत्रों का एल्कोहल फ्री होना है. यहां पर इत्रों का निर्माण नैचुरल तरीके से किया जाता है और ये प्रथा लगभग 4000 सालों से ऐसी ही है.
इन बीमारियों में इत्र की खुशबू करती है रामबाण इलाज
डिस्टेलेरी में तैयार किए गए इत्र पूरी तरह से प्राकृतिक गुणों से भरपूर और एल्कोहल मुक्त रखा जाता है. इसी कारण एक दवा के रूप में कुछ रोग जैसे एंग्जाइटी, नींद न आना और स्ट्रैस जैसे बीमारियों में इत्र की खुशबू रामबाण का काम करती है.
तो इस गर्मी वही पुराने फ्रैगरेंस, परफ्यूम की जगह क्यों ना इन ट्रेडिशनल इत्र का इस्तेमाल किया जाए.