आज़ादी! देशभक्ति वाले गीत,स्वतंत्रता दिवस की बधाईयां और चारों ओर सिर्फ तीन रंग से घिरा भारत. स्कूल में कल्चरल प्रोग्राम, टीवी पर लाइव शो, शहीदों को नमन, अवार्ड और बहुत सारे देशभक्ति के किस्सों से भरा आज़ादी का दिन.
प्राउड तो फील करती हूं मैं आप भी करते होंगे हमारे सैनिको पर. मेरे हिसाब से वही रियल हीरो हैं जो हमारी और देश की सुरक्षा के लिए अपनी जान तक दे देतें हैं.
स्वतंत्र…..मुझे ये बहुत हैवी वर्ड लगता है. आपको नहीं लगता? आज स्वतंत्रता को लोग सिर्फ 1947 की स्वतंत्रता से रिलेट करते हैं. हमारे दिमाग में यही है की इस दिन भारत को आज़ादी मिली थी. बहुत बड़ी बात है हमारे लिए, अगर देश नहीं आज़ाद होता तो हम लाइफ सोच भी नहीं सकते थे.मान लिया लेकिन अब क्या.. आज जो चीजें चल रहीं हैं, उससे भी आज़ादी दिलाने के लिए किसी न किसी लीडर को तो पैदा होना पड़ेगा. पर तब जब आपको ये पता चलेगा की आप वाकई में आज़ाद हो भी या नहीं.
आज भी स्वतंत्रता के मायने क्या देश की आज़ादी से ही हैं. हम वाकई स्वतंत्र हैं? नहीं! आज भी हम लड़ रहें हैं उन कई चीजों से जिससे हमको एक बार फिर आज़ादी की जरूरत है.
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हमें भी चाहिए अपनी मर्ज़ी से जीना
डांस सीख लो, पर्सनालिटी डेवलपमेंट कोर्स कर लो, नाईटआउट बिलकुल नहीं, कॉलेज पार्टी भाई को साथ ले जा, मीडिया नहीं बैंकिंग की तैयारी कर लो आराम की जॉब है, साड़ी पहनना सीख लो, किसी और शहर में जॉब करना नहीं, यहां सर्च करो मिल जाएगी. ऐसे बहुत से क्वेश्चन है जिसको हर दूसरी लड़की ने फेस किया होगा अपनी लाइफ में और अभी तक फेस करती आ रहीं होंगी. लड़कों से कोई क्यूं नहीं पूछता की कॉलेज पार्टी में जा रहे हो तो अपनी बहन को ले जा. नाईटआउट तुम्हारे लिए भी मना है. लड़कों पर लोगों को लड़कियों से ज्यादा भरोसा क्यों होता है फिर जब वही भरोसा तोड़ते हैं तब भी लड़कियां ही बंदिशों में जीती हैं.
“तो हमें चाहिए मर्जी से जीने की आज़ादी!”
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अभी भी झेल रहे हो स्कूल, कॉलेज, ऑफिसवाली पॉलिटिक्स?
बचपन से ही हम ऐसी पॉलिटिक्स झेलते आ रहे हैं जो हमारी सेहत के लिए हानिकारक है. बचपन में अगर किसी सब्जेक्ट टीचर के फेवरिट बन गए तो चांदी, नहीं तो वही फेवरिट स्टूडेंट के रूल्स झेलो. कहीं-कहीं पर टीचर्स के जबरदस्ती के टयूशन झेलो. नहीं किया तो क्लास रूम में उनकी पॉलिटिक्स को झेलो. बड़े हुए तो कॉलेज में प्रोफेसर की पॉलिटिक्स शुरू. इंटरनल नंबर्स, प्रोजेक्ट्स, थीसिस, इंटर्नशिप लैटर, प्लेसमेंट, जॉब इन सब के लिए आगे-पीछे करो नहीं तो पॉलिटिक्स झेलो. इतना ही नहीं ऑफिस में भी यही चीजें हुई होंगी आपके साथ प्रमोशन के लिए. तो क्यों झेल रहे हो! कुछ न बोल के खोने से बेहतर है, बोलकर कुछ पाना और बदलना.
“हमें चाहिए गंदी पॉलिटिक्स से आज़ादी!”
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लाइफस्टाइल अपडेटिड है पर माइंडसेट वही पुराना
लड़कियां जॉब करें, लड़कों के कंधे से कंधा मिला कर चले ये सोच अच्छी है. ऐसा परिवर्तन हुआ है लड़कियों ने आज हर फील्ड में तरक्करी की है आपकी बदौलत. हां! काबिलियत तो थी उनमें लेकिन आपमें से ही कुछ ने उनको प्रमोट किया. उनको आगे बढ़ने के लिए रोका नहीं. फिर जब उनके कपड़ो, लाइफस्टाइल की बात आती हैं तो सोच वही पुरानी हो जाती है. जब लड़के शॉर्ट्स पहन कर निकलते हैं तो किसी को कोई प्रॉब्लम क्यों नहीं होती. जब लड़कियां शॉर्ट्स पहने तो सारी सोच शॉर्ट्स की तरह छोटी क्यों हो जाती है. जब शहर में रेप होता है तो दोष लड़कियों के कपड़ों पर, उनके चरित्र पर दिया जाता है. फिर सलवार-कमीज और साड़ी पहनने वाली महिलाओं के साथ क्यों वारदात होती है. गांव की छोटी सी बच्ची के साथ क्यों रेप होता है इतना ही नहीं आप सब न्यूज़ पढ़ते हैं नवजात बच्ची के साथ भी ऐसा हुआ उसको तो कुछ भी नहीं पता होगा. तो आपको समझने में भी बहुत दिक्कत न हो इसलिए बता दूं कि बात कपड़ों की नहीं है बात ऐसे लोगों के दिमाग में फैले मानसिक रोग की है जिसको ना तो हम और ना ही हमारा शक्तिशाली कानून निकाल पा रहा.
“हमें चाहिए सुरक्षा के साथ जीने की आज़ादी!”
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या तो प्यार है या नहीं फिर जबरदस्ती के रिश्ते क्यों?
शादी करना जरुरी है. हमारे पेरेंट्स ने की थी, तो ठीक हैं, सोसाइटी का एक हिस्सा है. जरुरी नहीं लव मैरिज हो, जरुरी नहीं घरवालों की पसंद से हो, एक ही धर्म में हो या नहीं. अब शादी में ये विभाजन क्यों? इसमें क्यों फ्रीडम नहीं है. बहुत बदला है समाज लेकिन आज भी लव जेहाद,दहेज़,नारी उत्पीड़न जैसे केस क्यों आतें हैं. शादी ही तो है. क्या बिना प्यार के रहना पॉसिबल हैं. हक़ दो बराबर से लड़के को और लड़की को भी, जरूरी पड़े तो मदद दो उन लोगों की लाइफ को सेट करने में ,दहेज नहीं. अगर तुम्हारी पसंद की लड़की नहीं है तो क्या मार डालोगे. लव जेहाद नाम देकर फांसी दे दोगे? सब को समझ है. लाइफ में सिर्फ दो चीजें हैं, या तो प्यार है या नहीं. फिर जबरदस्ती के रिश्ते क्यों झेलना पड़ता है. क्योंकि आज़ादी नहीं हैं.
“बदलो क्योंकि हमें चाहिए नफरतभरे रिश्तों से आज़ादी!”
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जहां रहते हो वहीं से नफरत क्यों?
इस शहर में कोई लाइफ नहीं असली लाइफ तो बाहर कंट्रीज में है. न जॉब आप्शन, न घूमने कि जगह, घटिया लोग,टूटी सड़कें, प्रदूषण, गंदगी और न जाने क्या-क्या. शहर को ऐसा बनाया किसने? प्रदूषण है तो उसका निवारण करने के लिए हर शहर में एक टीम बनाई गयी है, जिस बात की वो सरकार से सैलरी ले रहे है. अगर सड़क टूटी है तो उनको बताओ, बनवाना उसका काम है. रही बात गंदगी की, तो खुद को भी करने से रोकना होगा तभी शहर आपके लायक बनेगा. कुछ शहर साफ़ कर रहें कुछ गन्दा कर रहें है ऐसे कोई फायदा नहीं. करना है तो जिम्मेदारी के साथ करो एक दिन का प्रयास नहीं है ये, हमें इसको आदत में डालना होगा.
“हमें चाहिए प्रदूषण, गंदगीमुक्त शहर में रहने की आज़ादी!”
आज की जो स्वतंत्रता की लड़ाई है वो हमारी खुद से है. इस लड़ाई में अंग्रेज भी हम में से हैं और लीडर भी. खुद के लोगों से स्वतंत्र होना है.और ऊपर पढ़ी सभी चीजों से आज़ादी के लिए जरुरी है अपने “डर को छोड़ने की आज़ादी”.. वो इसलिए की जब तक डरते रहोगे कुछ बोल नहीं पाओगे और जब तक आप खुद को “बोलने की आज़ादी” नहीं दोगे तो कुछ नहीं बदलेगा.हम बदलेंगे तो देश बदलेगा लेकिन तब जब हम बोलेंगे…
तो बोलिए और हमें बताइए आपके लिए आज़ादी के मायने क्या हैं?